आखिर गलत तो आखिर गलत ही है प्यारे...............
हॉं तो प्यारे, बजट भी पेश हो गया और होली भी मन गयी । चलते चलते चुनाव भी निबटा जा रहा है । किसान तो खैर गये काम से कुछ सरकार ने मारा, कुछ बिजली ने, कुछ खाद ने निबटाये तो कुछ ओले वारिश ने बचा खुचा सूपड़ा साफ कर डाला । अब बारी स्टूडेण्टों की है, बिना बिजली और कामचोर मास्टरों के साये तले, भ्रष्ट जिला शिक्षा कार्यालय की छांव तले उनने क्या खोया क्या पाया, अब चूंकि इम्तहान चालू हो रहे हैं, उनकी तैयारी और मेहनत का क्या इनामो इकराम होगा, समय बतायेगा ।
वैसे समय बड़ा रहमदिल है, कहते हैं कि कभी कभार डॉक्टर का काम भी करता है । राजनीति में कहा जाता है कि, आज पाप कर लो, अगले चुनाव से एकाध साल पहले धो डालेंगें । वैसे भी मनोविज्ञान कहता है कि जो आज घटित हुआ है वह तीन दिन या पॉंच दिन बाद उतना याद नहीं रखा जाता, इसके बाद तीन मॉंह और पॉंच माह बाद फिर तीन साल और पॉंच साल बाद वह लगभग बेमानी हो जाता है ।
राजनीति में यह भी कहते हैं कि कर्ज लेकर घी पियो, फिर चुकता किसको करना है, अगली सरकार भोगेगी ।
खैर जो भी है, जनता तो जनता है, एक कामधेनु दुधारू गाय की तरह, और राजनेता एक बेलगाम सॉंड़ की तरह, जिसे दोनो हाथ से नेता दोहते भी हैं और मौका पड़े पर .....। खैर चाहे जितना नेता खर्च करें, चाहे जितने ऐश करें, चाहे जितना चुनाव में खर्च हो चाहे क्रिकेट में, भरपाई तो इसी कामधेनु गाय को ही करना है , चाहे टैक्स बढ़ा दो चाहे गरीब का आटा दाल उससे दूर कर दो चाहे पेट्रोल डीजल मंहगे कर दो चाहे गरीब से बीड़ी सिगरेट छीन लो, भईया तुम्हारे बाप का राज है, जो चाहे सो कर दो । कोई कुछ नहीं कहने वाला, वैसे भी यहॉं है कौन सुनने वाला । कहने वाले भी तुम्हारे और सुनने वाले भी तुम्हारे ।
कभी ये तो नहीं बताओगे कि आखिर हर साल टैक्स बढ़ाते क्यों हो, आखिर क्यों हर साल मंहगाई बढ़ा देते हो भईये, हर साल पब्लिक से पैसा खींच खींच कर इसका करते क्या हो । ये जाता कहॉं है, आखिर कहॉं जा रहा है बढ़े टैक्सों का पैसा । अब कहोगे कि जनता का पैसा जनता पर ही लग रहा है, तो प्यारे जनता तो वहीं की वहीं है जहॉं आज से पचास साल पहले थी, उसे तो कोई नफा नहीं हुआ । गरीब तो आज भी पेट बांध कर सोता है, जब अपने बच्चों की भूख नहीं देख पाता तो आत्महत्या कर लेता है । हजारों हर साल देश में मरते हैं, मरते भी रहेंगे उन्हें कफन भी नसीब नहीं होता । उनकी लाशें चील, गिद्ध और कौये आज भी खाते हैं । नेता ऐयाशी करता रहे , अफसर भ्रष्टाचार करता रहे, तुम्हारी तिजोरी छकाछक भर रहे, इसके लिये हजारों मरते हैं, मरते हैं, चले जाते हैं, किसी का क्या बिगाड़ते हैं, बिगाड़ भी क्या सकते हैं । वैसे कहा भी गया है, कि अरे हृदय को थाम , महल के लिये झोंपड़ी बलि होती है ।
टैक्स बढ़ा कर यदि गरीबों की जिन्दगी बचा देते तो कोई बात थी, किसी बेरोजगार को रोजगार दे देते तो कोई बात थी, किसी अबला की आबरू बचा देते तो कोई बात थी । किसी सिर को कोई छत मुहैया करा देते तो कोई बात थी ।
जरा गरीबों से जाकर पूछो कि कहॉं हैं तुम्हारी योजनायें, हमने जो पैसा तुमको भेजा था वो तुम तक पहुँचा कि नहीं, जमीन पर खोजोगे तो मायाजाल पाओगे , अर्जी फर्जी जान जाओगे , जो भ्रष्टा खा रहा है वहीं जॉंच कर रहा है वही रिपोर्ट बना रहा है और अपनी पीठ खुद ठोक कर खुद को शाबासी दे रहा है, गरीब बेचारा कोने में दुबका खड़ा सहमा हुआ है, आखिर वह तो कीड़ा मकोड़ा ही है ।
कहॉं है तुम्हारा सूचना का अधिकार, कितनी स्वयं सेवी संस्थाओं को पिछले बीस साल में तुमने कितना फण्ड दे डाला, वे कहॉं हैं, कहॉं है उसकी धारा 4 और कहॉं है उसका पालन । कितनी स्वयंसेवी संस्थायें इण्टरनेट पर जानकारी का प्रकाशन कर चुकीं हैं, जरा बताना तो भईये । खरबों रूपये के इस सालाना घोटाले की जानकारी क्यों जनता से छिपायी जा रही है प्यारे । जरा सच को सामने तो आने दो, क्यों रोकते है पर्दाफाश होने से, यार प्यारे सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ तबसे अब तो बहुत दिन हो गये , अब तक कहॉं है तुम्हारी स्वयं सेवी संस्थायें, दम है तो लिस्ट छाप दो उनके वेब पतों की । नहीं तो फर्जी फटी ढोलक बजाना बन्द कर दो ।
यहॉं किसान मर रहा था, उन पर कहर टूट पड़ा था, छात्र रो रहे हैं, उद्योग धन्धे खत्म और चौपट हो गये, मगर सरकार होली मना रहे हैं, सुन्दरियों के अालिंगन पाश में जकड़े, रंग अबीर गुलाल और कभी ढोलक तो कभी तम्बूरा और कभी मंजीरा लटकाये हिजड़ों की तरह खिलखिलाते खी खी करते खीसे निपोरते फोटो खिंचा रहे है । अखबारों के फ्रण्ट पेज की खबर बन रहे हैं । उफ शर्म है ऐसी बेशर्मी और नालायकी पर , थू है ऐसी होली पर और ऐसी खबरों पर । जय हिन्द ।।
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